कृषक भाइयों को सादर समर्पित….

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स्वेदबिन्दु से उऋण नहीं है
सत्य उन्हीं का,जीवन शाश्वत
ईश्वर का वरदान अलौकिक
गीता,रामायण और भागवत

तम में और तीतिक्षा में
अगणित आशाएं पोषित कर
स्वार्थसिद्धि से परे समर्पण
निसदिन श्रम से पूरित आदत
स्वेदबिन्दु से उऋण नहीं है
सत्य उन्ही का,जीवन शाश्वत

नित संचित अनुमानों से
अपना मन थामे चलता है
तन गतसुखी बना डाला
मन सीमित ,साधन की चाहत
स्वेदबिन्दु से उऋण नहीं है
सत्य उन्हीं का,जीवन शाश्वत

भौतिकता में लिप्त नही
ऊंचे सपनों का भान नहीं
है देवालय की माटी सा
आत्मिकता को मिलती राहत
स्वेदबिन्दु से उऋण नही है
सत्य उन्हीं का,जीवन शाश्वत
ईश्वर का वरदान अलौकिक
गीता,रामायण और भागवत ।।

मौलिक एवं स्वरचित
प्रीति त्रिपाठी
नई दिल्ली

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