कलकत्ता (टुडे न्यूज़):केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद कांचरापाड़ा शाखा एवं मुक्तांकुर पत्रिका के तत्वावधान में “पर्यावरण का संरक्षण संवर्धन – हमारा ही दायित्व है” विषय पर मुख्यता युवा आवाज में एक वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता माननीय पंकज दीवान, मानद निदेशक केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद, नई दिल्ली ने की। कार्यक्रम का सफल संचालन ऊर्जावान युवा कवि सागर शर्मा ‘आजाद’ ने किया। कार्यक्रम की खासियत यह रही कि बड़ी संख्या में युवाओं की आवाज पर्यावरण संरक्षण के निमित गूंजी।कक्षा 3 की छात्रा कोमल शर्मा के सुंदर पर्यावरण गीत से कार्यक्रम की शुरुआत हुई।युवा विद्यार्थी श्रेया शर्मा,प्रियांशु शर्मा, ब्यूटी कुमारी,ईशा गुप्ता,प्रीति कुमारी,रितिका साह,आयुष मंडल,अंकिता शर्मा तथा नौजवान शिक्षक कार्तिक बांसफोर, नील गुप्ता,संतोष कुमार वर्मा ‘कविराज’ और सत्यजित प्रसाद ने विषय पर अपने अपने विचार व्यक्त किए।जिसका सार तत्व यह रहा कि हमारे पैरों के नीचे की जमीन से लेकर सर के ऊपर असीम आकाश तक और हमारे चातुर्दिक फैले हरीतिमा की अंगडाई, नदियों और समुद्रों के कल कल नाद, पहाड़ों की गंभीरता आदि से ही हमारा संपूर्ण जीवन रचा बसा है, सुखद है सुंदर है, स्वस्थ है और ज्यों ही हम इन सभी प्राकृतिक संसाधनो,अवययों से अपनी सुख-सुविधा के लिए बेजां छेड़छाड़ करते हैं त्यों ही इनका कोप हमारे ऊपर बरपता है और हमारा जीवन असहाय होने लगता है इसलिए अपने जीवन के सौंदर्य को बनाए रखने के लिए तमाम जीव जगत सह प्रकृति के आर्थिक संसाधनों का संरक्षण संवर्धन हमारे ऊपर ही निर्भर करता है इसलिए कि हम जीव जगत के श्रेष्ठ जीव है।
वरिष्ठ वक्ताओं में श्री रंजीत प्रसाद प्रांतीय संयोजक प. बंग कें स हिं प,सुशील कुमार शर्मा,डॉ. रामप्रवेश प्रसाद,राजेश्वर कुमार शर्मा डॉ प्रोफेसर दिव्या प्रसाद,दिल्ली से सरोज शर्मा ने विषय पर अपना अपना वक्तव्य
रखा और युवा वक्ताओं का उत्साहवर्धन किया और उनके बौद्धिक विकास हेतु इस तरह के और भी कार्यक्रम आयोजित करने का संकल्प लिया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए पंकज दीवान मानद निदेशक के स हिं प, नई दिल्ली ने, कांचरापाड़ा परिषद शाखा एवं ,मुक्तांकुर पत्रिका द्वारा किए जा रहे साहित्यिक सांस्कृतिक धारावाहिक कार्यक्रमों की काफी प्रशंसा की और आध्यात्मिक उद्धरण देते हुए पर्यावरण के साथ मनुष्य के संबंधों पर प्रकाश डाला और इसके संरक्षण के मानवीय कर्तव्य की ओर इशारा करते हुए धार्मिक ग्रंथों में प्रकृति प्रेम और संरक्षण संवर्धन के उदाहरण भी पेश किए। डॉ रामप्रवेश प्रसाद मुक्तांकुर के संरक्षक मंडल सदस्य के समीक्षात्मक वक्तव्य और धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।