दर्शक मात्र

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कुछ राहगीर हैं साथ अभी,
बहुतों ने ठाम बदल डाले।
सुख चंद्रकलाओं से चंचल,
जीवन में अभिनय पात्र रहे।

नीचे-ऊपर, ऊपर-नीचे,
जीवन के रेखाचित्र रहे।
मग में कुछ मिले हितैषी भी,
मतलब सधने तक मित्र रहे।
चल दिए छोड़ मँझधार हमें,
कुछ नाविक धूर्त कुपात्र रहे।

नित रहे बदलते पवन संग,
मरुथल से रिश्ते-नाते हैं।
कल तक जो लिपटे दामन से,
वे आज शीश इतराते हैं।।
गुरुवर तेरे आदेशों के,
हम अब तक सच्चे छात्र रहे।

आँधी-अंधड़ से आँखों में,
कुछ धूल गिरी, भयभीत हुए।
मित्रों सँग मीठी बात हुईं,
मौसम खुलते ही भूल गए।।
कितनी चिंताएं, कष्ट रहे,
हम अब तक सभ्य सुपात्र रहे।

भावुकता के समरांगण में,
संतोष भाव छलता देखा।
कोलाहल शांत सतह पर था,
अंतरमन थर्राता देखा।।
है जीवन आधा या पूरा,
हम अब तक दर्शक मात्र रहे।

कवि – कल्याण सिंह शेखावत
39- उमा पथ, राम नगर
सोडाला, जयपुर-302019
मो. 9116404149

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