संतोषी माता व्रत कथा और इसका महत्व

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संतोषी माता का व्रत मुख्यतः उत्तर भारत की महिलाएं रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि संतोषी माता का व्रत रखने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। सभी समस्याओं का समाधान निकल आता है। यह व्रत लगातार 16 शुक्रवार को रखा जाता है। संतोषी माता की विधि पूर्वक पूजा की जाती है। संतोषी माता श्री गणेश की पुत्री है जो भक्तों के सभी कष्ट दूर करती हैं।

संतोषी माता व्रत कथा (विस्तारपूर्वक)

बूढी औरत

बहुत समय पहले की बात है। एक बूढ़ी औरत थी। उसके कुल 7 बेटे थे। 6 बेटे मेहनती थे और कामकाज करते थे, परंतु सबसे छोटा बेटा आलसी और निकम्मा था। वह कोई काम नहीं करता था। ना ही कोई पैसे कमाता था। वह बूढ़ी औरत अपने 6 मेहनतकश बेटों को बहुत प्यार करती थी। उन्हें अच्छे से खाना खिलाती थी। सभी 6 भाइयों की जूठन सबसे छोटे बेटे को खिला देती थी। छोटा बेटा इस बात से अनजान था।

एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा “देखो मेरी मां मुझे कितना प्यार करती है। कितना ख्याल रखती है मेरा” छोटे बेटे की पत्नी बोली “तुम्हारी मां तुम्हें जूठन खिलाती है” छोटा बेटा इस बात को मानने को तैयार नहीं था। छोटा बेटा बोला “जब तक मैं अपनी आंखों से यह देख नहीं लेता मैं विश्वास नहीं करूंगा”

छोटे बेटे ने मां को जूठन परोसते देखा

कुछ समय बाद एक त्यौहार आया। छोटे बेटे ने निश्चय किया कि वह इस बार सच्चाई का पता लगाकर रहेगा। वह रसोई में गया और तबीयत खराब है बताकर वहीं पर लेट गया। उसने अपने चेहरे पर एक पतला कपड़ा ढक लिया जिससे वह सब कुछ देख सकें। सभी 6 बड़े भाई रसोई में आए। उस बूढ़ी औरत ने सभी को प्रेमपूर्वक खाना परोसा।

भोजन के पश्चात सभी की थाली में थोड़ा थोड़ा लड्डू की जूठन रह गई थी। बूढ़ी औरत ने जूठन को बटोरा और एक लड्डू बनाकर थाली में रख दिया और सबसे छोटे बेटे को जगाने लगी। “बेटा उठ जाओ! तुम्हारे भोजन करने का समय हो गया है” बूढ़ी औरत बोली

छोटे बेटे ने खुद को माँ द्वारा जूठन परोसते देखा तो उसने कहा कि “मां तुम मेरे साथ कितना बुरा व्यवहार करती हो। तुम मुझे इतने दिनों से जूठन परोस रही हो। मैं घर छोड़कर जा रहा हूं” इस पर बूढ़ी औरत बोली “हां हां चले जाओ! यदि कल जाते हो तो आज ही घर छोड़कर चले जाओ”

छोटा बेटा घर छोड़कर चला गया

अपनी मां द्वारा यह बुरा व्यवहार देखकर छोटे बेटे ने घर छोड़कर जाने का निर्णय कर लिया। वह अपने पत्नी के पास गया। उसने अपनी पत्नी से कहा “मैं कुछ समय के लिए बाहर जा रहा हूं। धन कमाकर लौटूंगा।

तुम अपने कर्तव्यों का पालन करना” छोटे बेटे ने अपनी पत्नी को एक अंगूठी निशानी के तौर पर दी। बदले में उसकी पत्नी ने अपने पति के कपड़ों पर पीठ की तरफ गोबर से सने हुए हाथों की छाप छोड़ दी।

छोटे बेटे को नौकरी मिलना

कुछ ही दिनों बाद छोटे बेटे को एक धनी सेठ के यहां दुकान पर काम मिल गया। वह अच्छी तरह नौकरी करने लगा। सामान खरीदने बेचने लगा और हिसाब किताब करने लगा। सेठ भी छोटे बेटे से बहुत प्रभावित था। 3 महीने के बाद उसने छोटे बेटे को अपने व्यापार में बराबरी का साझीदार बना लिया। 12 वर्षों में छोटा बेटा एक प्रसिद्ध व्यापारी और धनवान व्यक्ति बन गया।

छोटे बेटे की पत्नी की दुर्दशा

यहां ससुराल में छोटे बेटे की पत्नी की दुर्दशा हो रही थी। बूढ़ी औरत और घर के सभी सदस्य उसके साथ बुरा व्यवहार करते थे। घर के सभी काम छोटे बेटे की पत्नी से करवाए जाते थे।

छोटे बेटे की पत्नी ने संतोषी माता का व्रत रखा

एक दिन छोटे बेटे की पत्नी जंगल में लकड़ियां लाने गई थी। वहां पर उसने कुछ औरतों को संतोषी माता का व्रत रखते हुए देखा और उनसे व्रत की जानकारी ली। उसने लकड़ियों को बेचकर गुड और चना खरीदा और संतोषी माता का व्रत शुरू किया।

छोटे बेटे की बहु एक मंदिर में गई। उसने लोगों से पूछा “यह कौन सा मंदिर है?” लोगों ने बताया यह संतोषी माता का मंदिर है। छोटी बहु बड़े सम्मान के साथ माता के चरणों में गिर गई और बोलीमैं बहुत दुखी हूं माँ! मेरा दुख दूर करो!” संतोषी मां को उस पर दया आ गई।

छोटे बेटे को सपना आया

एक शुक्रवार बीतने पर ही उसके पति का पत्र आ गया। उसके पति ने कुछ धन भी भेजा था। धन को देख कर जेठ और जेठानी मुंह बनाने लगे। छोटे बेटे की पत्नी फिर से संतोषी मां के मंदिर में गई। उसने कहा “मां मुझे पैसा नहीं चाहिए मुझे तो अपना सुहाग वापस चाहिए।

मैं अपने पति के दर्शन करना चाहती हूं। उनकी सेवा करना चाहती हूं” संतोषी मां ने मुस्कुरा कर कहा कि शीघ्र ही तेरा पति घर लौटेगा। संतोषी मा ने छोटे बेटे को स्वप्न में उसकी पत्नी की याद दिलाई।

छोटे बेटे की पत्नी से लड़की के 3 गट्ठर बनाये  

छोटा बेटा भी संतोषी मां का नाम लेकर, उनके नाम का दिया जला कर अपना व्यापार करने लगा। कुछ ही दिनों में सभी काम निपट गए। छोटे बेटे की पत्नी संतोषी माता का व्रत हर शुकवार रखती। वह फिर से संतोषी मां के मंदिर में गई। उसने पूछा “मां यह धूल कैसे उड़ रही है?” मां ने कहा “तेरा पति घर आ रहा है।

लकड़ियों की तीन गट्ठर बना लो। एक नदी के किनारे रखो, एक यहां पर और तीसरे अपने सिर पर रख लो। लकड़ी के उस गट्ठर को देखकर तुम्हारे पति के मन में मोह पैदा होगा। वह यही पर रुक कर नाश्ता करेगा, उसके बाद घर जाएगा।

तब तुम लकड़ियां उठाकर घर जाना और चोक के बीच में लड़की का गट्ठर डालकर जोर जोर से कहना “सासूजी लकड़ियों का गट्ठर लो! भूसे की रोटी दो। नारियल के खोपरे में पानी दो। आज मेहमान कौन आया है?”

संतोषी माँ का कथन

संतोषी मां द्वारा बताए गयी इन बातों को छोटे बेटे की बहु ने माना और वह घर गई। उसने वैसा ही अपनी सास से कहा। उसकी सास कपट भरे शब्दों में बोली “बेटी तेरा पति आया है।

मीठा भात और भोजन कर और गहने कपड़े पहन ले” उसी समय छोटा बेटा घर लौटा और उसने अपनी मां को यह कहते हुए सुन लिया।  इस तरह छोटा बेटा घर लौट आया। उसकी मां ने उसे घर की चाबियां भी दे दी। वह घर की तीसरी मंजिल में जाकर रहने लगा।

शुक्रवार व्रत में किया खटाई का इस्तेमाल

सोलह शुक्रवार का व्रत अब पूरा होने वाला था। आखरी शुक्रवार को उद्यापन करना था। छोटे बेटे की पत्नी ने अपने पति से कहा “मैंने संतोषी माता व्रत रखा है मुझे उसका उद्यापन करना है। छोटी बहु ने अपने जेठ के बच्चों को भी उद्यापन में आने का निमंत्रण दिया। जेठानी ने योजना बनाई कि वह संतोषी मां के उद्यापन को भंग कर देगी

उसने अपने बच्चों को सिखाया की उद्यापन में जाना और किसी खट्टी चीज को खाने के लिए मांगना। इससे उद्यापन असफल हो जाएगा। संतोषी मां के व्रत करने के बाद जेठ के बच्चों ने भरपेट भोजन खाया और अंत में किसी खट्टी वस्तु को मांगने लगे।

छोटे बेटे की पत्नी ने कहा कि यह संतोषी मां का व्रत है। इसमें खट्टी चीजें नहीं खाते हैं। इस पर जेठ के बच्चे रुपए मांगने लगे। बहु ने लाड़वश उन्हें रुपए दे दिए। 

छोटे बेटे को राजा के सिपाही पकड़ कर ले गए   

बच्चों ने उन रुपयों से इमली खरीद कर खा ली। इससे संतोषी मां रुष्ट हो गई। छोटे बेटे को राजा के सिपाही पकड़ कर ले गए। बहु संतोषी मां के मंदिर में गई और बोली “मां मैंने तो आपका उद्यापन किया था। फिर मेरे पति को राजा के सिपाही क्यों पकड़ कर ले गए?” संतोषी मां बोली कि “तुमने व्रत के नियम तोड़े हैं इसलिए तुम्हें यह दंड मिला है। तुमने व्रत में खट्टी वस्तु का इस्तेमाल किया है”

बहु ने फिर से किया संतोषी मां व्रत का उद्यापन

छोटे बेटे की बहु बोली की “मां फिर से मैं तुम्हारा उद्यापन करूंगी” छोटा बेटा छूट गया। छोटे बेटे को राजा के सिपाहियों ने छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद शुक्रवार आया। इस बार फिर से बहु ने संतोषी मां व्रत का उद्यापन करने का निश्चय किया।

इस बार भी उसने जेठ के बच्चों को निमंत्रण दिया। पर उन्हें कोई खट्टी वस्तु ना ही खाने को दी और ना ही उसे खरीदने के लिए धन दिया। बहु ने ब्राह्मणों को फल भी दिया। इससे संतोषी मां बहुत प्रसन्न हुई।

संतोषी माता ने ली बहु की परीक्षा

छोटे बेटे की बहु को संतोषी मां के आशीर्वाद से एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। वह अपने पुत्र को भी संतोषी मां के मंदिर ले जाती थी। एक दिन संतोषी मां ने बहु की परीक्षा लेने का विचार किया। उन्होंने अपना रूप बदल लिया। अपना चेहरा पतला बना लिया। सिर पर एक सींघ थी। सींघ के ऊपर मच्छर मंडरा रहे थे। संतोषी मां ऐसा रूप बनाकर छोटे बेटे के घर गई।

उनका यह रूप देखकर बूढ़ी औरत (बहु की सास) बोली की “यह कोई पापी जादूगरनी है। इसे यहां से भगाओ” डर की वजह से उसने खिड़की दरवाजे बंद कर लिए। परंतु बहु संतोषी मां को पहचान गई।

वह बहुत खुश हुई और बोली कि “आज संतोषी मां स्वयं हमारे घर पधारी हैं” मैंने इनके लिए 16 शुक्रवार के व्रत रखे थे। संतोषी मां ने बहु को आशीर्वाद दिया। इस तरह जो भक्त संतोषी मां का व्रत रखते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।  

संतोषी माँ व्रत का महत्व

संतोषी माँ विघ्नहर्ता गणेश की पुत्री हैं। यह संतोष का प्रतिनिधित्व करती हैं। यदि मनुष्य के जीवन में संतोष न हो तो सारा रुपया पैसा, धन, दौलत बेकार हो जाता है। संतोषी मां के व्रत रखने से सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही मन में संतोष उत्पन्न होता है। यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है।

संतोषी माँ व्रत रखने की विधि

1- इस व्रत को शुरू करने के लिए प्रातः काल नहा धो लेना चाहिए। उसके बाद मंदिर में या किसी साफ-पवित्र स्थान पर संतोषी मां की प्रतिमा/ चित्र को स्थापित करें।

2- एक कलश जल भरकर रखे। उसके ऊपर गुड़ और चना भरा हुआ एक कटोरा रखें।

3- संतोषी माता की प्रतिमा/ चित्र के सामने घी का दीपक जलाएं।

4- मां को लाल वस्त्र, चुनरी, नारियल, सुगंधित धूपबत्ती, फूल चढ़ाएं।

5- मां को चने और गुड़ से भोग लगाये।

6- “संतोषी माता की जय” बोलकर माता की कथा आरंभ करें।

7- संतोषी मां व्रत कथा बोलते और सुनते हुए हाथ में गुड़ और चना रखें।

8- कथा समाप्त होने पर हाथ में लिया हुआ गुड़ चना गाय को खिला दें।

9- कलश के ऊपर रखा हुआ गुड और चना प्रसाद के रूप में बांट दें।

10-    कथा समाप्त होने के बाद कलश के जल को घर में सभी स्थानों पर छिडक दें।

11-      बचा हुआ जल तुलसी के पेड़ में डाल दें।

12-      यह व्रत पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से रखना चाहिए।

ध्यान दें

इस व्रत में किसी खट्टी वस्तु को हाथ नहीं लगाना चाहिए, ना ही खट्टी वस्तु किसी को खाने के लिए देनी चाहिए। खट्टी वस्तु बुराइयों का प्रतीक होता है। 


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