नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की सोच को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। लिहाजा बुधवार को लोक सभा में मौजूद सभी पार्टियों के अध्यक्षों की बैठक पर बुलाई है।
जानकारी के अनुसार, बैठक में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ और 2022 में आजादी के 75वें वर्ष के जश्न, महात्मा गांधी के इस साल 150वें जयंती वर्ष को मनाने के अलावा अन्य कई मुद्दों पर विचार विमर्श किया जाएगा।
पीएम मोदी की इस पहल से ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ जैसे संवेदनशील मुद्दे बड़ी राजनीतिक बहस छिड़ गयी है। ममता बनर्जी ने तो इस बैठक का हिस्सा बनने से ही साफ मना कर दिया है।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे का कहना है। ‘पीएम मोदी मानते हैं कि वन नेशन, वन इलेक्शन के विचार को बीजेपी या मोदी के एजेंडा के तौर पर नहीं देखना चाहिए, ये देश का एजेंडा होना चाहिए।’
नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (बीजेडी) ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। खबर के अनुसार, कांग्रेस ने इस प्रस्ताव के सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर कोई फैसला किया जाएगा।
वहीं इस मुद्दे पर लेफ्ट, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और टीआरएस ने सवाल खड़े किए। ऐसे में सभी दलों की एक राय हो पाना आसान नहीं दिख रहा है।मामले पर चुनाव आयोग, नीति आयोग, विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग बातचीत कर चुके हैं। कुछ ही राजनीतिक पार्टियां इसके पक्ष में हैं।
अधिकतर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया है। ये तो तय है कि जब तक इस पर सहमति नहीं बनती, इसे धरातल पर उतारना मुश्किल होगा।देश में पहले भी चार बार हो चुके हैं एकसाथ चुनाव
गौरतलब है कि ”एक देश एक चुनाव” के आधार पर साल 1952, 1957, 1962, 1967 में एकसाथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं, लेकिन ये सिलसिला 1968-69 में तब टूट गया, जब कुछ राज्यों की विधानसभाएं वक्त से पहले ही भंग हो गईं।
जानकारों का कहना है कि देश की आबादी ज्यादा है, इसलिए एकसाथ चुनाव कराना संभव नहीं है। इस पर ये तर्क भी दिया जाता कि देश की आबादी के साथ ही टेक्नोलॉजी और संसाधनों का भी विकास हुआ है, लिहाजा एकसाथ चुनाव कराए जा सकते हैं।