जल है आज जल ही कल है।
जल बिन जीना बड़ा मुश्किल है।
जल सबसे बहुमूल्य धन है।
जल से हम सबका जीवन है।।
जल को जीवन कहा जाता है। जल है तो हम हैं। जल से यह हरियाली , यह नदी ,यह झरने,यह सुंदर प्रकृती है। जल सिर्फ मानव के लिए ही नहीं बल्की संपूर्ण चराचर जगत के लिए जरूरी है।
आजकलआए दिन हम सुनते हैं, पढ़ते हैं,नदिया सुखती जा रही है जल स्तर गिरता जा रहा है। जबकि हमने तो बचपन में पढ़ा था धरती का लगभग 70% भूभाग जल से ढका हुआ है इतना जल होते हुए भी पानी की आखिर कमी क्यों ?इसका उत्तर है इसमें से 97% पानी समुद्र का खारा पानी है। और 2% पानी ग्लेशियर और बर्फ के रूप में हमारे धरती पर मौजूद है अब बचा सिर्फ मानव के उपयोग के लिए 1% पानी ।
पानीअगर सीमित है तो हमें इसके उपयोग की भी सीमा रखनी होगी। सुना है सुजानगढ़ के रूपचंद जी सेठिया सिर्फ 5 तोला पानी में स्नान कर लेते थे। अनुपम था उनका जल-संयम।
मैंने बचपन में एक कहानी मेरी मां से सुनी थी ।शायद आप लोगों ने भी बहुत बार सुनी होगी। एक बार एक सेठ की छोटी बहू ने जिद पकड़ ली कि मुझे अलग होना है।
सेठानी ने पूछा बहू क्या हुआ? यह अचानक ऐसा कठोर फैसला क्यों? उसने कहा जिस घर में दो बहूओं के बीच भेद किया जाए उस घर में मैं नहीं रह सकती।
सास को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने कहा बहू हमने न तो कभी अपने दोनों बेटों में भेद के है ना ही कभी अपने दोनों बहू में कैद किया है तुम्हें ऐसा क्यों लगा? बहू ने कहा परसों जब जेठानीजी से घी गिर गया था ससुर जी ने कुछ नहीं कहा।और कल जब मैरे पैर की ठोकर से पानी गिर गया तो ससुर जी ने मुझे टोका दिया।तभी पास खड़े ससुर जी ने कहा बहू तुमने मेरे कहने का मकसद नहीं समझा पहली बात पानी बड़ी मशक्कत के बाद मिलता है। दूसरी बात पानी की एक बूंद में असंख्य जीव होते हैं। इतना पानी गिरने से कितने जीवो की तुम्हारे द्वारा विराधना हुई होगी। जितना जरूरी हो उतना तो पानी हमें उपयोग करना पड़ता है। पर व्यर्थ में हम पानी को क्यों गवाएं? इसीलिए मैंने तुमसे कहा था बहू देख कर चला करो। यह हुई धार्मिक दृष्टि से जल-संयम की बात। पर जल संयम तो हर क्षेत्र में जरूरी है। दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं हमारे देश में भी कई ऐसे राज्य हैं जहां आज भी जल प्राप्त करने के लिए कोसों दूर चलकर जाना पड़ता है। आने वाले समय में यह समस्या और भी विकराल होने वाली है जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के दशमाचार्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी तो अक्सर फरमाते थे कि आने वाले समय में विश्व युद्ध हुआ तो पानी के लिए होगा।
यदि हम अब भी नहीं संभले ।
और जल संरक्षण के लिए कुछ उचित कदम नहीं उठाया तो हमारी आने वाली पीढ़ी को भारी जल संकट का सामना करना पड़ेगा। पर सवाल है जल को कैसे बचाएं? तो उसके लिए हमें छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना होगा। जैसे नल या शावर के नीचे बैठ के स्नान नहीं करना। खुले नल के नीचे हाथ पांव नहीं धोना कुल्ला नहीं करना। बर्तन आदि नहीं धोना। यही काम हम बर्तन में जल भरकर करें तो बहुत सारा पानी बच जाएगा।घर में अगर किसी नल से पानी का लीकेज हो तो उसे जल्द से जल्द रिपेयर कराएं।
कपड़े धोने के बाद उसी पानी को हम अपने प्लांट्स में सिंचाई के रूप में यूज कर सकते हैं घर में पोंचे के लिए काम में लिया जा सकता है शौचालय और में भी यूज़ किया जा सकता है।
मेहमान तो आपके और हमारे सबके घर में ही आते हैं। यह बात अलग है अभी कोरोना काल में कोई मेहमान घर पर नहीं आ रहे हैं। पर जब भी मेहमान आते हैं हम सबसे पहले उन्हें पानी सर्व करते हैं। पानी सर्व करने की गिलास का साइज छोटा रखें। और गिलास को भी पूरा भरकर ना दें।
मेरी यह बात शायद आपको बचकाना लग सकती हैं। कि इस उपाय से कितना तो पानी बचेगा? पर आपने सुना होगा ना कि बूंद बूंद से घट भरता है।
जल संरक्षण के लिए दूसरा तरीका है वह है वर्षा के पानी को,कुंड अथवा छोटे-छोटे जलाशय आदि बनाकर उस पानी का संचय कर लिया जाए।
एक तरीका और है वह है नदिया हमारे पीने के पानी का सबसे बड़ा स्रोत है। अतः जरूरी है हम अपनी नदियों को अपने आसपास के ताल- तलैयों को साफ रखें। कचरा डालकर मेला ना करें।
इन सब उपायों के साथ साथ जरूरी है हम पर्यावरण को भी शुद्ध रखे क्योंकि भूमि,हवा, पानी व वन यह सब कड़ियां आपस में जुड़ी हुई है।
वन नहीं होंगे तो वर्षा नहीं होगी। वर्षा नहीं होगी तो वृक्ष नहीं होंगे।वृक्ष नहीं होंगे तो ऑक्सीजन कहां से मिलेगी? ऑक्सीजन की अहमियत आज हमें कोरोना काल में शायद सबसे ज्यादा महसूस हो रही है।
पर्यावरण प्रदूषित हुआ तो न जीव जंतु बचेंगे और नहीं भौतिक वातावरण शुद्ध रहेगा। अतः इस विषय पर गंभीरता से चिंतन-मंथन व मनन कर अनुशीलन की जरूरत है।
हर्षलता दुधोड़िया। हैदराबाद।