क्यों ?परेशान रहता है चीन

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आशीष तिवारी :-

  • सुभिरू बन सुभूमि की पूजा नहीं होती,बन सका तो ज़ुर्म परवर के सर को समेट लो ,
  • जाबांज इस वतन के नहीं है डरते कभी।
  • बन सका तो नापाक इरादों को चहेट लो|

भारत का वह प्रदेश जहाँ के स्वागत् में सूर्य भी सबसे पहले दस्तक देते है जिसका नाम है अरुणाचल प्रदेश जिसका दिल यानि राजधानी है ईटानगर |जो प्रकृति छटा से घिरा है इसकी सीमाएं असम नागालैंड वर्मा(म्यांमार) और तिब्बत से मिलती है|भौगोलिक दृष्टि से पूर्वोत्तर के राज्यों में यह सबसे बड़ा राज्य है मूल रूप से इस इलाके में सबसे पहले बसनें वाले तिब्बत के आदिवासी थे अरुणाचल प्रदेश में ज्यादातर आदिवासी समूह के लोग है जिनमें थाईलैंड और वर्मा मूल के भी आदिवासी है |हरी भरी वादियों पहाड़ झरनों झीलों से घिरा यह प्रदेश अपनी खास खूबसूरती के लिये भी जाना जाता है,यहां के ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म से ताल्लुक़ात रखते है,अरुणाचल प्रदेश एक समृद्ध प्रदेश है यही कारण है की वर्षों से चीन की बुरी नजर इस प्रदेश पर रही है जिसके कारण चीन इस प्रदेश के बहुत बड़े हिस्से पर अपना दावा पेश करते आया है यही कारण है की भारतीय सीमा से सटे भूभाग पर सड़कें और रेलवे लाइनें बना रहा है अरुणाचल प्रदेश के लोगों को लुभानें के लिये भी लोक लूभावन खबरें होती है किन्तु अरुणाचल प्रदेश और ईटानगर के लोगों पर भारतीयता की ऐसी रंग चढ़ी है जिसे उतार पाना किसी के बस की बात नहीं है,अब तो यहाँ बिहार पूर्वी उत्तर प्रदेश मध्यप्रदेश बंगाल और नेपाल के भी लोग वहां अरुणाचल को शक्ति भरनें के लिये सदैव तत्पर रहते है किन्तु चीन की छल करनें वाली नियति पर हमेशा सवाल उठते है|1913 और 1914 में चीन नें उस समय के स्वाधीन तिब्बत और ब्रिटिश हुकूमत के कारगुजारी से एक संधि के तहत कुछ भूमि का बटवारा हजारों किलोमीटर दूर शिमला में किया था जिसमें ब्रिटिश हुकूमत के हैनरी मैकमोहन नें 890 किलोमीटर की एक लकीर उस बैठक में नक्शों के आधार पर खिंचा था जिसकी वजह तमांग और तिब्बती इलाकों को भारत में शामिल कर लिया गया जिसकी खुन्नस आज भी चीन के दिल में है |आज भी वो अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत कह कर उस पर अपना कब्जा चाहता है जो कभी सम्भव नहीं है |ऐसे में भारत बार बार चीन को मैकमोहन रेखा का हवाला देकर उसे खदेड़ता है और दूर रहनें का फरमान सुनाता है इतिहास के पन्नों में यह भी दर्शाया गया है की जिस समय मैक मोहन रेखा खिंची गई उस समय चीन नें कड़ी आपत्ति जताई थी किन्तु उस समय भी ब्रिटिश शासक के साथ रूस खड़ा था और इस मुद्दे पर गम्भीरता से चीन पर दबाव बनाकर एक संधि के तहत् इस रेखा(मैक मोहन रेखा) को मान्यता दिला दी किन्तु यह भी सच है की जिस समय यह रेखा खिची गई उस समय चीन के पास कोई आधिकारिक मैप नहीं छापा गया था नक्शा तो 1935 में ओलफ कोर नामक एक अधिकारी नें मैक मोहन रेखा को ही आधार बना कर एक नक्शा छपवाया और तवांग क्षेत्र से तिब्बती प्रशासन को भी ख़त्म कर दिया गया इतना होनें के बाद भी विश्व सामुदायिक सङ्गठन को नकार कर भी चीन भारत के प्रति आक्रामक रहा उसनें 1962 में भारत को एक युद्ध थोपा तब के समय में भारत की सैन्य शक्ति उतनी आधुनिक और उन्नत नहीं थी फिर भी हमारे सैनिकों नें चीन के साथ मजबूती से लड़ा ,किन्तु इतनें से भी चीन को शांति कहाँ मिली अब वो नेपाल पाकिस्तान को अपनें साथ लेकर इनकी जमीन पर सैन्य अड्डा बनाना चाह रहा है पाकिस्तान जहां लोग आर्थिक बदहाली से भूखों मर रहे है वो भी चीन से अनुदान के चक्कर में उसके हाँ में हाँ मिला रहा है नेपाल की भी वही हाल है जहां चीन के उसकावे में भारत जैसे मित्र देश से दो दो हाथ करनें को तैयार है हलाकि नेपाल को अपनें औकात का पता है फिर भी वो अपनें आदत से वाज नहीं आ रहा |कुछ कमियां अपनी भी रही है चीन के आक्रामक रवैये के बाद भी पिछली तमाम सरकारों नें चीन के साथ मधुर रवैया अपनाकर उसके लिये भारतीय बाजारों को खोल रखा और यहां के लोग सस्ते सामानों की तरफ मुड़ते चले गए और भारत के लघु और कुटीर उद्योग परेशान हो गये फलस्वरूप आर्थिक मुद्दों पर भारत कमजोर बना |समय बदल गया है समय के साथ भारत की सरकार भी बदली है किन्तु नहीं बदला है तो चीन का रवैया आज भी उसे 1962 का भारत दिखता है जो उसकी बड़ी भूल है |1962 के बाद भारत में अमूलचुक परिवर्तन हुए है हमारी सैन्य शक्ति भी बढ़ी है हम आर्थिक रूप से भी सक्षम हुए है यही कारण है की चीन के इस रवैये पर विश्व के तमाम देश भारत के पक्ष लेनें को तैयार है |प्रधान मंत्री के रूप में मोदी जैसे शसक्त प्रधान मंत्री है जो हर क्षेत्र में शिखर छुनें को आतुर है जिसका लोहा विश्व के समृद्ध देश भी मान रहे है |गलवान घाटी में चीनी फौजियों के कायराना हरक्कत के बाद भारत का जो विकराल रूप सामनें आया है कहीं न कहीं चीन के दिल में घबड़ाहट है किन्तु वो उसे जाहिर नहीं कर सकता क्यों की वो अपनें झूठे शान शौकत से पाकिस्तान नेपाल भूटान वर्मा पर धौस जमाता है|भारत के तमाम सङ्गठनों भारतीय अवाम युवा विग्रेड नें जिस प्रकार चीनी सामान का वहिष्कार किया है इसका खामियाजा चीन को भुगतना पड़ेगा |भारत अब अक्साई चीन की तरफ बढ़ रहा है यही कारण है की भारत पूर्वी और उत्तरी लद्दाख में 3 डिवीज़न फौज पहुँचा दी गई है मतलब 45 हज़ार जवानों की तैयारी कर दी गई है ऐसे में आर या पार की स्थिति है क्यों की भारत की मित्रता भरी बातों को चीन भारत की कमजोरी समझ रहा है इस बार भारत के प्रधान मंत्री नें भी स्पस्ट बतला दिया है की भारत अब अपनी एक एक इंच जमीन का हिसाब लेनें को वचनब्द्ध है चाहें इसके लिये जितनी मसक्कत करनी पड़े |एक समय था जब भारत 62 की लड़ाई में केवल 45 सौ जवान इस क्षेत्र में कमान सम्भाले हुए थे किन्तु अब उसी जगह पर हमारे 45 हजार सैनिक खड़े है चीन को भारत के शक्ति का अंदाजा हो जाना चाहिए,किन्तु अहंकार मद में चीन अभी भी नहीं सुधर रहा आनन फानन में वो भी अपने सैनिकों का जमावड़ा खड़ा कर रहा है किन्तु चीनी सेना के हिसाब से भारत पहले से ही माकूल जवाब देनें की मूड़ में है यही कारण है की हमारे तमाम सेना अध्यक्ष संजीदगी से चीन के हर हरक्कत का संज्ञान ले रहे है अब तो समय बतलाएगा की चीन की वो शक्ति जिसे लेकर वो तमाम अपनें पड़ोसी देशों का जमीन हड़पनें की फिराक में रहता है वो ताकत उसमें है की नही किन्तु सच ये है की भारत अब वो भारत नहीं ,अब तो चतुर्दिक हमलें का भी हम पुरजोर जवाब देनें में सक्षम है | जय हिन्द

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