तुलसी आंगन बिरवा है माँ या वेद की ऋचाएं हैं

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अंतरराष्ट्रीय संस्था रचनाकार – एक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं सुरेश चौधरी प्रस्तुति के संयुक्त आयोजन से आज मातृदिवस के अवसर पर स्व. दुर्गावति चौधरी स्मृति काव्य गोष्ठी की 24वीं गोष्ठी आयोजित की गई, जिसमे पूरे विश्व से लब्धप्रतिष्ठित 9 कवियों ने भाग लिया। आभासी दुनिया पर आयोजित यह कार्यक्रम अपने आप मे अनूठा था, जिसे रचनाकार के फेसबुक पटल पर जीवंत प्रसारित किया गया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन दिल्ली की सुप्रसिद्ध कवयित्री संतोष कुमारी सम्प्रति ने किया, डॉ ममता वार्ष्णेय की सुमधुर सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आरंभ हुआ। विद्या भंडारी जी की रचना माँ बहुत तुम्हारी याद आती है ने स्रोताओं का मन मोह लिया। मास्को रूस से पधारी विश्वप्रसिद्ध गायिका कवयित्री श्वेता सिंह ‘उमा’ ने गीत” माँ तू कितनी अच्छी है” संगीत के साथ गाया,डॉ ममता वार्ष्णेय जी की कविता उन कोरोना के दिवंगत व्यक्तियों को समर्पित था जिनकी माताएं नहीं रही ” कहाँ ये अश्क मानते हैं” ने सब को भावुक कर दिया। नैरोबी केन्या से जुड़ी कवयित्री सारिका फलोर ने घनाक्षरी एवं गीत से माँ को याद किया ” धूल तेरी चरणों की ले शीश पर लगाइए” , कनाडा से जुड़ी मानोशी चटर्जी की कविता माँ प्रथम गुरु ने जहां सब को रुला दिया वहीं माँ के लिए उन्होंने कहा “बिना छत के भी कोई आशियाना हो सकता है”। क़तार दोहा से जुड़ी प्रसिद्ध कवयित्री वंदना राज ने अपनी माता जी को याद कर कहा “माँ के आंचल में संसार नज़र आता है, सम्प्रति जी ने “माँ सरीखा शब्द बोलो कहाँ से लाओगे” गीत गाया , अंत मे शब्दाक्षर के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविप्रताप सिंह ने माँ पर एक ग़ज़ल ” माँ ख्वाब में आकर मुझे लोरी सुनाती है,” सुनाई।
रचनाकार के संस्थापक अध्यक्ष सुरेश चौधरी ने गीत “तुलसी आंगन बिरवा है माँ या वेद की ऋचाएं हैं” सुनाई यह गीत उन्होंने 2 वर्ष पूर्व माँ के देहावसान वाले दिन लिखा था। उनका यह निश्चय की माता जी की स्मृति में निरंतर हर माह गोष्ठी हो बहुत सराहा जा रहा है। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए सुरेश जी ने कहा यूँ तो माँ विश्व का सबसे छोटा मात्र एक वर्ण का शब्द है परंतु विश्व मे इससे बड़ा कोई शब्द नहीं पूरी गीता भी इस एक वर्ण से छोटी पड़ जाती है।

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