मुखौटा चाहे जितना भी बदलो मेरे भाई
कभी नहीं करोगे तुम गरीबो की हिताई
पूंजीपतियों को देते तुम सदा सहुलियत
गरीबो के साथ करते रहे हो बेवफाई ।।
घोटाले करना तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है
इस बीमारी का तुम्हारे पास न कोई उपचार है
मुखौटा बदल बदल होते होे देश के सत्ता पे काविज
और देश को लगाते बंटाधार है ।।
घोटाले और महंगाई के सिवाये हमे दिया क्या है
फिर भी, सत्ता पे तुम्हे ही् ज्यादा आसिन किया है
क्योंकि, आजादी के रहनुमा जानते थे हम तुम्हे
बदले में हमसे धोखा और छल हीं् किया है ।।
तुम सदा मुखौटा बदल इतिहास दोहराता रहा है
तुम सदा हमे ऊल्लू बनाता रहा है
शहीदों की छबि लगा लगा तुम लोग
बार बार हमारे विश्वास को तार तार करता रहा है ।।
हमारे नेताओं के देह तक का किया सौदा
बेच रहा है अमेरिका के हाथों देश का मसौदा
देश के बइमानो अब तुम गद्दी छोडो
बना नहीं है तेरे लिए देश का ये अहौंदा।।
कविवर कर रहे हैं देश की जनता से आह्वान
अन्धभक्ति और आडम्बर से हटाओं अपने ध्यान
अविलंब उखाड़ फेको देश के इन गद्दारों को
तब कहीं जाकर देश का होगा कल्याण ।।
कवि- सूरज पाशवाॅ ,
पश्चिम बंगाल, टीटागढ़ ।