खौफ़ में हैं आज हर वशर
सुनसान सा है दिखता हर शहर
मिलूं तो कुछ सुनूँ और सुनाऊ कब्र सा है दिखता हर डगर ।
रोज़ेऐहश्र जैसे आ गया हो
वक्त कुछ वैसा ही सन्देह जता गया हो
हर गलियों में कीनाश घुम रहा है
लगता है जैसे उन्हें बता गया हो ।
न जाने ये कैसा कोहरा छा गया है
जिन्दगी जीना दुभर हो गया है
जायें तो जायें कहां इस जहाँ में
हर सतह मरघट बन गया है ।
इंसानियत को धर्मो से छलनेवाले
तेरे दर पे लगे हैं क्यूँ अब ताले
दरगाहे खाक छानने को सलाह दी हमें
खुद को क्यूं क्या हरम के हवाले ।
जिन्दगी जीने को ये कैसी सजा है
मौत जैसे खुलेआम कर रहा जफ़ा है
पाशवाँ जहां हार गया हो
लगता है अब खुदा खफा खफा है ।
कवि __सूरज पाशवाँ
टीटागढ़ ‘
पंश्चिम बंगाल